- 6 Posts
- 20 Comments
पापा देखो ना आज
मैं कितनी सायानी हो गयी हूँ.
आँखों में नमी नहीं आने देती
सदा मुस्कुराती हूँ.
सबके चेहरों पे हंसी लाती हूँ.
आपने ही सिखाई थी न ये सीख ….
संतुष्टि के धन को संजोना
शिकायत न करना !
आपने ही अपनी धडकनों से
लगा मेरी धडकनों को
लोरियां सुनाई थी
मैं भी अपने बच्चों को
अपने सीने से लगा
ऐसी ही लोरियां सुनाती हूँ, पापा !
आप सदा कहते थे न
मैं आपका अच्छा बेटा हूँ
मैं अच्छी भी बन गयी हूँ
पापा अब तो लौट आओ न पापा !
पापा आपके बिना तो मैं
सागर हो कर भी मरुस्थल हूँ.
सबके बीच स्वयं को भुला कर भी
आपको नहीं भुला पाती पापा !
पापा तो सदा पापा ही रहते हैं ना
फिर आप ‘पापा थे’ कैसे हो गए ?
मैं तो आज भी आपकी ही बेटी हूँ.
लौट आओ न पापा !
xxxxxxxxx
पपीहा तरसे ज्यू सावन को
मन तरसे बाबुल अंगना को
कैसे उस घर की राह करूँ, जहाँ
बाबुल नहीं अब गल्बैयन को
जब जब उस देहरी जाऊं
हर कोने मोरे बाबुल पुकारें
नयन निचोडूं के मन को भींचूं
यादों की अगन जलाये.
पैरों पर मेरे पैर संभाले
दुनिया में चलना सिखाया था
सीने से लगा इस लाडो की
हर चोट पे मरहम लगाया था.
साथ बैठा कर दक्ष कराया
पढ़ा लिखा कर ज्ञान बढाया था
हाथ पकड़ दूजे हाथ में सौपा,
बिटिया का घर संसार सजाया था.
सदाबहार के फूल सुगंध से
बाबुल अनत्स्थल में समाये हो
बाबुल-बाबुल मन ये पुकारे
जहाँ भी छुपे हो आ जाओ ना.
Read Comments